सत्य खबर, ऋषिकेश
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 4.41 करोड़ रुपये की मशीन खरीद में धांधली के मामले में जांच कर रही सीबीआई ने माइक्रोबायोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर के पशुलोक विस्थापित क्षेत्र के निर्मल बाग स्थित आवास से बड़ी मात्रा में विदेशी ब्रांड की अंग्रेजी शराब बरामद की है।
सीबीआई के डिप्टी एसपी की सूचना पर आबकारी विभाग की टीम मौके पर पहुंची। आबकारी विभाग ने सहायक प्रोफेसर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। मशीन खरीद में हुई धांधली के मामले में सीबीआई मुकदमा दर्ज कर जांच कर रही है। इसी के तहत बृहस्पतिवार देर रात सीबीआई की दो टीमों ने एम्स परिसर स्थित उनके आवास पर छापा मारा।
जांच एजेंसी की कार्रवाई शुक्रवार शाम तक जारी रही। इस दौरान टीम ने एम्स के कई अधिकारियों से लंबी पूछताछ की। स्विपिंग मशीन की खरीद में घोटाले और फर्जी ढंग से मेडिकल स्टोर स्थापित करने के मामले में पांच अधिकारियों समेत नौ लोगों के खिलाफ संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज है।
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सहायक प्रोफेसर पर आबकारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज
इस दौरान सीबीआई टीम को प्रोफेसर बलराम जी ओमर के आवास से भारी मात्रा में विदेशी शराब मिली। इस पर सीबीआई के डिप्टी एसपी राजीव चंदोला की सूचना पर आबकारी निरीक्षक प्रेरणा बिष्ट अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचीं। बिष्ट ने बताया कि सहायक प्रोफेसर के सरकारी आवास से विदेशी ब्रांड की शराब की खेप बरामद हुई हैं। सभी शराब की बोतल विदेशी ब्रांड की हैं। उन्होंने बताया कि बरामद शराब जब्त कर सहायक प्रोफेसर बलराम जी ओमर के खिलाफ आबकारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
बिसात बिछाने वालों तक कब पहुंचेगा सीबीआई का हाथ
सीबीआई ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हुए भ्रष्टाचार की कड़ियों को जोड़ना शुरू कर दिया है। यहां भ्रष्टाचार की जड़ें संस्थान की स्थापना के साथ से ही जुड़ी बताई जा रही हैं। अभी गिने चुने मोहरे सीबीआई की कार्रवाई के घेरे में आए हैं। इन मोहरों को चला रहे तत्कालीन और मौजूदा उच्च अधिकारी सीबीआई की पहुंच से बाहर हैं। सीबीआई एम्स में घोटालों की जांच कर रही है। एम्स प्रशासन पर संस्थान की स्थापना के बाद से ही दवाओं, उपकरणों की खरीद और नियुक्तियों को लेकर अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। वर्ष 2017 के बाद तो यहां भ्रष्टाचार के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए गए। एम्स के आला अधिकारियों ने दवा और उपकरण खरीदने के नाम पर केंद्र सरकार को गुमराह कर करोड़ों की चपत लगाई। मनमाने ढंग से नियमों को ताक पर रखकर संस्थान में स्थायी और अस्थायी नियुक्तियां की गईं।
वित्त विभाग के आला अधिकारी इससे बेखबर
भ्रष्टाचार के अधिकांश मामलों में तत्कालीन निदेशक और वित्त विभाग के अधिकारी की भूमिका संदेह के घेरे में है। एम्स में वर्ष 2018 में स्वीपिंग मशीन और फर्जी ढंग से मेडिकल स्टोर स्थापित कर केंद्र सरकार को 4.41 करोड़ की चपत लगाने का मामला भी तत्कालीन निदेशक और मौजूदा वित्त अधिकारी के कार्यकाल का है। निदेशक की संस्तुति और वित्त सलाहकार की राय पर ही एम्स में सामान की खरीद और ठेके दिए जाते हैं। संस्थान में स्थायी और अस्थायी नियुक्तियां भी निदेशक की संस्तुति के बिना नहीं की जा सकती हैं। एम्स में भ्रष्टाचार के नित नए आयाम गढ़े जा रहे थे और तत्कालीन निदेशक और वित्त विभाग के आला अधिकारी इससे बेखबर थे, यह बात किसी को भी हजम नहीं हो रही है। हालांकि, अब सीबीआई की कार्रवाई शुरू होने से आस जगी है। एम्स में भ्रष्टाचार को पनपाने वाले इन आला अधिकारियों का राजनीतिक रसूख जांच पर हावी नहीं होता है तो भ्रष्टाचार के सूत्रधार भी सलाखों के पीछे होंगे।
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