सत्यखबर सफीदों (महाबीर मित्तल) – गौ, गंगा, गायत्री, गीता ये चारों भारतीय संस्कृति के स्तम्भ हैं। उक्त उद्गार गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने प्रकट किए। वे शुक्रवार को नगर की श्री गौशाला में गौभक्तों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर विशेष रूप से गौसेवा आयोग के चेयरमैन भानीराम मंगला, हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के सदस्य एडवोकेट विजयपाल सिंह, सदस्य श्रवण कुमार गर्ग, डा. राज सैनी, कुलबीर खर्ब, राजेश जाखड़ व हरिओम तायल मौजूद थे। श्री गौशाला के अध्यक्ष शिवचरण कंसल ने गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज व आए हुए अतिथियों का अभिनंदन किया।
अपने संबोधन में स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि ईश्वर का साक्षात स्वरूप गौमाता हैं। वेद-पुराणों में कहा गया है कि केवल एक गौ माता की पूजा और सेवा करने से सभी 33 कोटि देवी-देवताओं की पूजा संपन्न हो जाती है। गौसेवा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त करने का सुलभ, सरल, वैज्ञानिक और सर्वश्रेष्ठ साधन है। वेद, शास्त्र, पुराण व गीता इत्यादि ग्रंथों के अध्ययन, चिंतन, मनन से यह सिद्ध हो चुका है कि गौ माता हमारी सर्वोपरि श्रद्धा का केंद्र व भारतीय संस्कृति की आधारशिला है। वैज्ञानिक शोधों में सिद्ध हो गया है कि गौदुग्ध और गौमूत्र में सोना पाया जाता है और पंचगव्य से 108 रोगों का सफल इलाज होता है।
गौरक्षा एवं संर्वधन आज देश की धार्मिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक, सामजिक, आर्थिक, प्राकृतिक, नैतिक, व्यवहारिक, लौकिक एवं पारलौकिक अनिवार्य आवश्यकता है। गाय, गंगा, गायत्री व गीता के दर्शन को व्यवहार में लाने की आवश्यकता है। गौरक्षा से बढक़र कोई धर्म नहीं है और गौपालन, गौसेवा मानवीय सद्गुणों के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि गाय गोबर की खाद खेतों में इस्तेमाल करनी चाहिए। गाय के गोबर की खाद बंजर भूमि को उपजाऊ कर देती है। पुरातन संस्कृति व परंपरा को जीवित करने की जरूरत है। संस्कारों व संस्कृति से जोडऩे के लिए बच्चों को गौसेवा से जोडऩा होगा।
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