सत्यखबर, चढ़ीगढ़
आपको बता दे की कोरोना संकटकाल में परीक्षाओं को लेकर छिड़ी लड़ाई खूब चर्चा में रही। जिसमें छात्रों के भविष्य को देखते हुए यूजीसी अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को लेकर अड़ गया था, लेकिन अब वह पढ़ाई को लेकर राज्यों के साथ ऐसा कोई टकराव नहीं रखना चाहता है। यही वजह है कि विश्वविद्यालयों पर पढ़ाई को लेकर कुछ भी नहीं थोपा जाएगा, बल्कि सभी को अपने स्तर पर इससे जुड़ा फैसला लेने की पूरी छूट दी जाएगी। वह छात्रों को जिस तरह से पढ़ाना चाहते है, उसका पूरा फैसला ले सकेंगे।
सीधे तौर पर ये कह सकते है की किन-किन छात्रों को क्लास में बुलाना है, किसे आनलाइन पढ़ाना चाहते है जैसे सारे निर्णय अब वह अपने स्तर पर करेंगे। हालांकि 30 फीसद कोर्स आनलाइन कराने का निर्देश दिया जा चुका है। यूजीसी वैसे भी राज्यों और राज्य के विश्वविद्यालयों के साथ अब कोई नया विवाद नहीं खड़ा करना चाहता है। यही वजह है कि बंद पड़े विश्वविद्यालयों और कालेजों की पढ़ाई को लेकर जो नई गाइडलाइन तैयार की जा रही है, उनमें राज्यों को इससे जुड़ा पूरा फैसला लेने के लिए अधिकृत किया जाएगा।
इसके साथ ही यह गाइडलाइन सितंबर के अंत तक आने की संभावना है। फिलहाल सभी विश्वविद्यालयों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं करानी है। जिस पर यूजीसी पैनी नजर बनाए हुए है। कोरोना संक्रमण के बीच यूजीसी ने सबसे पहले अप्रैल में एक एकेडमिक कैलेंडर जारी किया था, जिसमें सभी विश्वविद्यालयों से जुलाई में परीक्षाएं कराने को कहा था, साथ ही सितंबर से पढ़ाई शुरु करने को कहा था। हालांकि बाद में कोरोना संक्रमण के बढ़ने के बाद जुलाई में प्रस्तावित परीक्षाओं को स्थगित कर दिया गया था।
साथ ही पहले और दूसरे वर्ष के छात्रों को आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर ही प्रमोट करने को कहा है, जबकि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को 30 सितंबर तक कराने का समय दिया। इसके बाद राज्यों और राज्य के विश्वविद्यालयों के साथ विवाद शुरू हो गया। दरअसल, करीब आधा दर्जन राज्य और उनके दो सौ विश्वविद्यालय कोई भी परीक्षा नहीं कराना चाहते थे। इनमें से कई राज्यों ने एकतरफा इसका ऐलान भी कर दिया था। हालांकि देश में मौजूद करीब एक हजार विश्वविद्यालयों में से ज्यादातर यूजीसी के पक्ष में ही थे। बाद में इस विवाद के सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने पर भी यूजीसी के पक्ष में फैसला हुआ।
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