सत्यखबर
इस साल की शुरुआत में भारत के लोगों को लगने लगा था कि कोरोना अंतिम सांसें गिन रहा है। किसी को अंदाजा नहीं था कि अप्रैल की तस्वीर इतनी भयावह होगी। उसी तरह से किसी को भी मालूम नहीं कि मई और जून में क्या होने वाला है। पिछले साल लॉकडाउन में गुजार देने वाले लोगों को अब लगने लगा है कि क्या कभी हमें इस आपदा से छुटकारा मिलने वाला भी है या नहीं ? या फिर इस अनदेखे वायरस ने जिंदगी जीने का अंदाज अब हमेशा के लिए बदल दिया है। कौन बच पाएगा, कौन नहीं बच पाएगा ? मन में तरह-तरह के सवाल पैदा होने लगे हैं? ऑनलाइन पोर्टल रिडिफ डॉट कॉम ने देश में कोरोना महामारी के मौजूदा स्वरूप और भविष्य में इसको लेकर उठने वाली तमाम आशंकाओं को लेकर काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर शेखर मांडे से बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई है।
उनसे सवाल किया गया कि क्या उन्हें लगता है कि इस वायरस को लॉकडाउन से कंट्रोल किया जा सकता है? तो उन्होंने कहा कि ‘हां भी और नहीं भी। लॉकडाउन लोगों को दूर करने के लिए लगाया जाता है, जैसे कि पिछले साल नेशनल लॉकडाउन लगा था। लेकिन, इसका अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है। इसलिए तय यह करना है कि क्या ज्यादा जरूरी है। हमने पूरी दुनिया में देखा है कि वायरस से लड़ाई और इकोनॉमी की रक्षा दोनों में बैलेंस करने की कोशिश की गई है। इसलिए लोगों की आवाजाही पर थोड़ा नियंत्रण किया जा सकता है और पूरे शहर की जगह लोकल लॉकडाउन लगाया जा सकता है।’ सवाल हुआ कि लॉकडाउन के बावजूद वायरस जाने का नाम नहीं ले रहा तो वे बोले, ‘इसके पीछे आइडिया ये है कि संक्रमण के चेन को जितना हो सके उसे तोड़ा जाय। संक्रमण के चेन का मतलब इंसान से इंसान के बीच सांसों में घुली बूंदों के चेन को ब्रेक करना। जब एक स्थिति पर आप इसे नियंत्रण में ले आएंगे तो लॉकडाउन हटाया जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि इसके साथ ही जहां भी कोविड केस हैं, उसकी तत्काल टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और पॉजिटिव लोगों को आइसोलेट करें। इस तरीके को पहले बहुत ही सफलता के साथ अपनाया जा चुका है। कई बीमारियां पहले इसी तरह से खत्म हो चुकी हैं। जरूरत एक साझा रणनीति की है, जिसमें वैक्सीनेशन के साथ-साथ इंफेक्शन की चेन को ब्रेक करना है। इस सवाल के जवाब में वो बोले- हमें पता है कि वायरस रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट्स के जरिए फैलता है, जो बंद कमरों और जहां सही वेंटिलेशन नहीं है, वहां मौजूद रह सकता है। उसमें भी अगर ऐसे बंद कमरों में ज्यादा लोग हैं तो उसमें किसी के संक्रमित रहने की संभावना भी ज्यादा हो जाती है। वहीं, खुली जगहों में यह बूंदें ज्यादा देर तक नहीं पड़ी रहती हैं और वह बहुत तेजी से बिखर जाती हैं। लेकिन, जब दिसंबर और जनवरी में हमने महसूस किया कि केस तेजी से कम होने लगे तो लोगों ने फिर से अपनी गतिविधियां बहुत तेज कर दीं, एक-दूसरे खुलकर मिलने-जुलने लगे, पार्टियां आयोजित होने लगीं और ये सारी ज्यादातर शाम और रात के समय में शुरू हुईं।
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यानी दिन में अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अगर सबकुछ खुला रखा जाता है तो रात में आकर वही लोग फिर से पार्टियों, पब, रेस्टोरेंट में जाना ना शुरू कर देते हैं, इसलिए वायरस को फैलने से रोकने के लिए नाइट कर्फ्यू की जरूरत है। यूएन के नोबल एजेंसी के पिछले साल की वह भविष्यवाणी, जिसमें उसने बताया था कि 2021 ज्यादा भयावह होगा, इसपर वो बोले कि ‘हर महामारी की दूसरी और तीसरी लहर ज्यादा भयावह होती है। उम्मीद कीजिए कि दूसरी लहर जल्द खत्म हो जाए। हालांकि, इसके बाद भी तीसरी लहर आने की संभावना है। अगर उसमें भी हम ढीले पड़े तो यह हमपर बहुत ही भारी पड़ेगा। इसलिए सबको याद रखना होगा कि महामारियां लहरों में आती हैं और वैक्सीनेशन के बावजूद लोगों को कोविड के अनुकूल व्यवहार करते रहना होगा।’ लेकिन, दूसरी लहर में मृत्यु दर कम रहने के बारे में उनका कहना है कि दुर्भाग्य से 65 साल से ज्यादा के लोग और गंभीर बीमारियों वालों में काफी सारे लोगों ने पहली लहर में ही दम तोड़ चुके थे। इसलिए जोखिम वाले ऐसे लोगों की संख्या काफी घटी है और ऊपर से उनमें से कई लोगों को अब वैक्सीन भी लग चुकी है। इन सब चीजों की वजह से मृत्यु दर कम हुआ है। उन्होंने यह भी कहा है कि तीसरी लहर और ज्यादा भयावह हो सकती है, लेकिन एक स्तर के बाद मृत्यु दर में बहुत ही तेजी से गिरावट आ जाएगी। सबसे बड़ा सवाल कि कोरोना वायरस खत्म कब होगा ? इसपर उन्होंने कहा कि ‘म्यूटेशन कभी नहीं रुकेगा यह सामान्य प्रक्रिया है। जेनेटिक ढांचे में म्यूटेशन को कोई भी नहीं रोक सकता, यह होता रहेगा। एक समय के बाद होगा ये कि वायरस कम से कम घातक होता चला जाएगा और आखिरकार एंडेमिक हो जाएगा। शायद इसमें कुछ वर्ष लग सकते हैं।’
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