सत्यखबर, नरवाना (सन्दीप श्योरान) :-
कोरोना वायरस ने प्रत्येक व्यक्ति को झिंझोड़ कर रख दिया है तथा लॉकडाउन में लोगों के काम भी ठप्प पड़ गए हैं। इस समय मजदूरों की बात की जाए तो उनको रोटी के लाले पड़ गए हैं और फिर प्रवासी मजदूरों की मजबूरी का तो कहना ही क्या। हालांकि केंद्र तथा राज्य सरकारों ने प्रवासी मजदूरों को उनके ठिकाने भेजने के थोड़े-बहुत इंतजाम तो किए हैं, जो नाकाफी हैं। इसीलिए तो इन मजदूरों को कोरोना वायरस से मरने का डर नहीं है, बल्कि भूखों मरने का डर सता रहा है। उनका कहना है कि जब मरना ही है, तो परिवार के पास तो पहुंचे, जो उनका अंतिम दर्शन तो कर लेंगे। इसी तरह का एक वाक्या मंगलवार को नरवाना-जींद हाइवे पर देखने को मिला, जहां आधा दर्जन प्रवासी सुबह 4 बजे पंजाब के पातड़ां से बिहार के अपने गृह जिला सपरा का 1200 किलोमीटर का सफर साइकिल पर तय करके निकले। उन मजदूरों ने बताया कि वे पातड़ां में गैस-चूल्हा व कूकर इत्यादि रिपेयरिंग का काम करते थे, जो लॉकडाउन ने चौपट कर दिया। जब खाने के लिए उनके पास पैसा नहीं बचा है, तो वहां कब तक रहते। वे अपने राज्य बिहार तो पहले ही जाना चाहते थे, लेकिन पंजाब में कफ्र्यू लगा होने के कारण ऐसा नहीं कर पाए। इसलिए थोड़ी-सी छूट मिलने पर वो अपने घर को निकल पड़े हैं। साइकिल में हवा भरने के लिए पंप है, तो खाने के लिए चावलों से बनाया सूखा चूरमा साथ लिए हुए हैं। उन्होंने कहा कि रास्ते में चाय-रोटी के लिए कोई होटल मिल गए तो ठीक, नहीं तो चावलों से बनाए इस खाद्य पदार्थ से काम चला लेंगे। अब चाहे कुछ भी हो, भूखे रहें या प्यासे अपने घर जाएंगे और तभी तो अपने परिवार से मिल पाएंगे।
Copper scrap reclamation projects Copper scrap industry associations Metal scraps recycling solutions
Copper cable scrap pricing, Metal reclamation and recovery center, Copper scrap legislation
Sustainable aluminium recycling solutions Scrap aluminium lifecycle analysis Metal scrap breakup