सत्य खबर,चण्डीगढ़, डॉ नवीन धवन
आज ही के दिन यानि 21 जून 1977 को जननायक स्व. चौ. देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे। अपने राजनीतिक संघर्ष और विद्रोही स्वभाव के चलते ही चौ. देवीलाल को जननेता की उपाधि मिली। उनके व्यक्तित्व में कुछ तो खासियत थी ही जो इतने वर्षों बाद भी वो जनता और खासकर किसानों के दिलों पर राज कर रहे हैं। बता दें कि हरियाणा में वर्ष 1977 में जब जनता पार्टी को विशाल बहुमत मिला तब चौधरी चरण सिंह, चांदराम को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे पर चांदराम ने स्वयं मना कर दिया था। जिसके बाद 21 जून 1977 को देवीलाल को सबकी सहमति से विधायक दल का नेता चुना गया और मुख्यमंत्री बनाया गया था। उनके नाम का प्रस्ताव जनसंघ के डॉक्टर मंगलसेन ने रखा था जबकि बलवंत तायल, रिजकराम और भजनलाल ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया था।
हालांकि स्व.चौ. देवीलाल मात्र 2 वर्ष तक ही मुख्यमंत्री रहे। उन्हें 28 जून 1979 को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी। दरअसल 6 जून 1979 को 43 विधायक मोराजी देसाई व चंद्रशेखर से मिले और उनसे कहा कि या तो देवीलाल मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दें या फिर नए सिरे से विश्वास मत प्राप्त करें। वहीं 26 जून 1979 को देवीलाल विश्वसात मत हासिल नहीं कर सके। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकदल के बागी विधायकों को उकसाकर जनसंघ ने देवीलाल की पीठ में छुरा घोंपने का काम किया था। याद दिला दें कि 1977 में जनता पार्टी के 6 घटक थे। इन घटकों में.भारतीय लोकदल की 45 सीट, भारतीय जनसंघ को 13 सीट, संगठन कांग्रेस को 5 सीट, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी को 5 सीट, सोशलिस्ट पार्टी को 5 सीट व भारतीय आर्य सभा को 2 सीट मिली थी। भारतीय लोकदल में केंद्रीय जहाज मंत्री चांद राम के पास 18 विधायक थे। भगवत दयाल के पास करीब 6 विधायक थे। ऐसे में हर गुट ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी चाहता था।
जिसके चलते पहले चरण में डॉक्टर मंगलसेन व चांद राम के प्रतिनिधि प्रीत सिंह राठी को ही मंत्री बनाया गया। वहीं 1 जुलाई 1977 को डॉक्टर कमला वर्मा, बीरेंद्र सिंह नारनौंद व ओमप्रकाश राणा रोहट मंत्री बनाये गए थे। जबकि 17 जुलाई को सरदार तारा सिंह, भजन लाल, कर्नल राम सिंह, सतबीर सिंह मलिक व सुषमा स्वराज को मंत्री बनाया गया था। दूसरी तरफ वरिष्ठ नेता रिजकराम, बलवंत तायल और मूलचंद जैन मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज थे। हरियाणा में जहां एक तरफ खेमेबाजी बढ़ती जा रही थी, वहीं केंद्र में पीएम मोरारजी देसाई और गृहमंत्री चरण सिंह में भी खींचतान लगातार बढ़ती जा रही थी। अब ऐसे में ऊपर की लड़ाई का असर हरियाणा की सत्ता की सेहत पर पडऩा भी लाजिमी था और पड़ा भी।
बताया जा रहा है कि चौ. देवीलाल को परेशान करने के लिए विधानसभा में हरद्वारी लाल अपने दोस्त विधानसभा अध्यक्ष ब्रिगेडियर रणसिंह मान तथा राज्यपाल सरदार हरचरण सिंह बराड़ के साथ जानबूझकर परेशानियां खड़ी कर रहे थे। यह सारा षडयंत्र महर्षि दयानंद विश्विद्यालय का वीसी बनाने के लिए किया जा रहा था और वो उसमें कामयाब भी हुए।
वहीं देवीलाल सरकार को अस्थिर करने के लिए सिरसा के समाजवादी विधायक कॉमरेड शंकरलाल अहलूवालिया ने इस विद्रोही खेमे की अगुवाई की। जिसे हिसार के बलवंत तायल का समर्थन था। भीतर की पीड़ा सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिलना या कम मिलना था पर बाहर विरोध के स्वर अलग थे। विरोध में कहा गया कि देवीलाल का बेटा ओमप्रकाश चौटाला जनता पार्टी से अलग अपना संगठन बना रहा है और दूसरा नाराजगी का कारण यह बताया गया कि 5 सितंबर को भिवानी की सांसद चंद्रावती को जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था।
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वहीं रामधारी गौड़, अयोध्या प्रसाद, भजन लाल व ओमप्रकाश चौटाला महासचिव नियुक्त हुए। इनमें ओमप्रकाश चौटाला की नियुक्ति सबसे ज्यादा खटक रही थी। उल्लेखनीय है कि स्व.चौ.देवीलाल ने अपने जीवन में 22 चुनाव लड़े, 12 में विजयी हुए। हालांकि उनके साथ यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य ही रहा है कि वे अपनी उपप्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री की टर्म पूरी नहीं कर सके। यही नहीं अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्हें 1991, 1996 एवं 1998 में लगातार तीन बार रोहतक संसदीय सीट से भूपेंद्र सिंह हुड्डा से हार का सामना करना पड़ा। जबकि 1991 में घिराय विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार प्रो. छत्रपाल जैसे नए चेहरे से हार का सामना करना पड़ा।
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