सत्यखबर, चढ़ीगढ़
राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर कांग्रेस में मचे घमासान में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कूदने से कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा हैरान तो हैं, लेकिन परेशान नहीं। हैरान इसलिए कि 2005 में प्रदेश में कांग्रेस को विजय मिली तो सोनिया गांंधी ने चौधरी भजनलाल और चौधरी बीरेंद्र सिंह के बजाय हुड्डा को वरीयता देकर मुख्यमंत्री बनाया। तब सैलजा भी हुड्डा की पैरोकार थीं। इसके बाद साढ़े नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे हुड्डा को दिल्ली का संरक्षण मिलता रहा।
बीते विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदले गए तो हुड्डा को पार्टी का चेहरा बनाया गया। हुड्डा की अनुशंसा वाले नेताओं ने सबसे अधिक विधानसभा टिकट झटके। राज्यसभा के लिए उनका (सैलजा का) टिकट काटकर हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र को दिया गया, फिर भी हुड्डा चिट्टीबाजी करने लगे। रही बात परेशान होने की तो इस चिट्ठीबाजी से हुड्डा के नंबर कम होंगे और इससे सैलजा क्यों परेशान हों।
उधर बरोदा उपचुनाव में जीत का अंतर बढ़ाने के लिए सत्तारूढ़ दल भाजपा से ज्यादा उनके सहयोगी दल जजपा के मुखिया और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ज्यादा चिंतित हैं। दुष्यंत बरोदा में अपना सिक्का जमाने के लिए भाजपा दिल्ली दरबार में भी दलील दे आए हैं। उनका कहना है कि जिस पर सबकी सहमति बन जाए, उसमें कतई विलंब नहीं करना चाहिए।दरअसल, दुष्यंत को अपने समर्थकों को सत्ता का एहसास कराने में काफी मुश्किल हो रही है क्योंकि उनके दल के खाते से जो एक विधायक मंत्री और 15 नेता चेयरमैन बनने थे, उनकी नियुक्ति टलती ही जा रही है। दुष्यंत मानते हैं कि उपचुनाव से पहले रेवड़ी बांट दी जाती है तो उपकृत होने वाले नेता कम से कम 15 हजार वोट की बढ़ोतरी कर देते। अब मुख्यमंत्री कोरोना संक्रमित होकर अस्पताल में हैं। उनकी जगह पर नायब होने के नाते दुष्यंत खुद हैं, लेकिन रेवड़ी बांट नहीं सकते।
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