चंडीगढ़। हरियाणा की राजनीति में ओमप्रकाश चौटाला के नाम और गतिविधियों की चर्चा न हो तो अधूरापन रह जाता है। अपने पिता स्वर्गीय देवीलाल की अंगुली पकड़कर राजनीति में आए चौटाला इस कदर राष्ट्रीय फलक पर छाए कि पांच बार सूबे के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। करीब तीन हजार शिक्षकों की भर्ती घोटाले जिसे जेबीटी घोटाला के नाम से भी जाना जाता है, उसमें सजा काट रहे चौटाला आजकल पैरोल पर बाहर हैं। 86 साल के हो चुके इन बुजुर्ग, मगर हौसलेवाले नेता को इस बात का बेहद गुस्सा है कि सजा पूरी होने तथा उम्र अधिक होने के बावजूद उन्हें जेल से रिहा नहीं किया जा रहा। इसके पीछे वह राजनीतिक षड्यंत्र मानते हैं। आजकल वह अपने बेटे अभय सिंह चौटाला के चंडीगढ़ स्थित निवास पर हैं। अब वह काफी बुजुर्ग हो चुके हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं को पहचानने तथा उन्हें नाम लेकर बुलाने की उनकी पुरानी आदत बरकरार है। चौटाला सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक कार्यकर्ताओं से मिलते हैं। मकान के पीछे की तरफ लॉन में आम के पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं। फिर शुरू होता है बातचीत का सिलसिला। संगठन की मजबूती, पुरानी बातों का जिक्र और पारिवारिक बातचीत चर्चा का आधार बनते हैं। बीच-बीच में वह नए आने वाले लोगों से उनका हाल-चाल और चाय-पानी के बारे में पूछना नहीं भूलते। चौटाला की रग-रग में राजनीति समाई हुई है। इनेलो के टूटने का उन्हें जितना गम है, उससे कहीं अधिक हौसला उनमें संगठन को दोबारा खड़ा कर पाने का है। चौटाला यहां तक कहने से नहीं हिचकते कि अजय यानी उनके बड़े बेटे और दुष्यंत यानी पोते अड़ गए, वरना सत्ता हमारी होती। उनका इशारा साफ है। इनेलो में टूट का जिम्मेदार वह काफी हद तक अपने बड़े बेटे और पोते को मानते हैं। यह अलग बात है कि पोते दुष्यंत इसके लिए चाचा अभय सिंह की तरफ अंगुली उठाते रहे हैं। अब संगठन को नए सिरे से खड़ा करने में चौटाला दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी के तमाम नाराज पदाधिकारियों को अपने साथ मिलाकर चौटाला ने राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है कि पिछले चुनावों में सोशल इंजीनियरिंग के जिस फार्मूले से वह सत्ता में काबिज होते आए हैं, वह फार्मूला अभी भी बरकरार है। प्रदेश में सोनीपत जिले की बरौदा विधानसभा सीट का उपचुनाव सिर पर है। यहां से पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेहद करीबी श्रीकृष्ण हुड्डा विधायक हुआ करते थे। उनका देहावसान हो जाने के बाद अब इस सीट पर उपचुनाव होना है। भाजपा और जजपा यानी मनोहर लाल और दुष्यंत चौटाला की जोड़ी मिलकर उपचुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस अपने पुराने गढ़ को बचाने की जद्दोजहद में है। लोगों की सबसे अधिक दिलचस्पी यह जानने में है कि इस उपचुनाव में आखिर इनेलो यानी चौटाला का क्या रोल रहने वाला है। छोटे बेटे अभय सिंह को बड़े चौटाला फील्ड में उतार चुके हैं और खुद घर में रहकर राजनीति के तार बुन रहे हैं।
चौटाला के कहने पर ही अभय कुछ दिन पहले हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ. अशोक तंवर के सिरसा निवास पर होकर आए हैं। तंवर हालांकि इनेलो में शामिल होने से इन्कार करते हैं, लेकिन तंवर के दिल में हुड्डा के प्रति चूंकि पुरानी रंजिश है, इसलिए उसे निकालने के लिए तंवर यदि अचानक इनेलो के उम्मीदवार बन जाएं तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं होगी। बरौदा उपचुनाव से पहले भाजपा-जजपा गठबंधन हरियाणा मंत्रिमंडल में बदलाव तथा प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी पिछड़े वर्ग के या जाट नेता को काबिज करने की रणनीति पर काम कर रहा है। कांग्रेस हालांकि हुड्डा, सैलजा, रणदीप, किरण और कुलदीप खेमों में बंटी है, लेकिन अभी तक का जो इतिहास रहा है, उसमें हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र अपनी बात हाईकमान से मनवाने में कामयाब रहे हैं। ऐसे में बरौदा उपचुनाव को भविष्य की राजनीति का ट्रेलर भी माना जा रहा है। ओमप्रकाश चौटाला और दीपेंद्र सिंह हुड्डा इस बात को स्वीकार करते हैं कि बरौदा उपचुनाव भविष्य की राजनीति की दिशा तय करने वाला है।
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