सत्य खबर हरियाणा
पिछले पांच वर्षों में हरियाणा विधानसभा का कोई सत्र ऐसा नहीं गया, जब दसवीं और बारहवीं के परीक्षा नतीजों को लेकर सरकार को कठघरे में न खड़ा किया गया हो। भला हो इस कोरोना का जिसने बच्चों के रिजल्ट को काफी हद तक बेहतर बना दिया और सरकार को मुस्कुराने के साथ ही विपक्ष को चुप्पी साधने के लिए मजबूर कर दिया। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी के दसवीं और बारहवीं के बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम घोषित हो चुके हैं। इन दोनों ही कक्षाओं के परीक्षा परिणामों ने सरकारी स्कूलों की व्यवस्था को खुद पर गर्व करने का अवसर दिया है। राज्य में दसवीं के परीक्षा परिणामों में जहां इस साल 10 प्रतिशत से अधिक का उछाल आया है,वहीं यमुनानगर तथा पंचकूला ने 25 से 35 फीसद तक की वृद्धि के साथ सुधार किया है।
कई जिलों में सरकारी स्कूलों का परीक्षा परिणाम निजी विद्यालयों से भी बेहतर रहा है। 12 हजार से अधिक विद्यार्थी मेरिट के साथ यानी 80 फीसद से अधिक अंक लेकर पास हुए जो पिछले वर्षों की तुलना में एक रिकॉर्ड है। पिछले वर्षों के परीक्षा परिणामों का अध्ययन करें और भाजपा सरकार के समय के परिणाम की बात करें तो इस सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले ग्रेस माक्र्स देकर बोर्ड परिणाम को बेहतर करने की परंपरा को बंद कर दिया। साथ ही निर्णय लिया कि बच्चे अपने दम पर पास होकर दिखाएंगे।
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वर्ष 2015 में आया पहला परीक्षा परिणाम काफी निराशाजनक रहा। दसवीं कक्षा का सरकारी स्कूलों का रिजल्ट केवल 30.3 प्रतिशत था,जबकि प्राइवेट स्कूलों का 57 प्रतिशत। इस बार के नतीजे बिना किसी ग्रेस माक्र्स और नकल रहित व्यवस्था के बाद जारी हुए हैं। वर्ष 2015 में कम रिजल्ट आने पर स्कूलों की आलोचना हुई थी, परंतु धीरे-धीरे इसमें सुधार होता गया। राजकीय विद्यालयों ने अपने परिणाम में ही वृद्धि नहीं की, अपितु निजी विद्यालयों के साथ पास प्रतिशत के 27 फीसद के अंतर को भी कम करके दिखा दिया। इस बार के दसवीं के परिणामों में न केवल पास प्रतिशत बढ़ा, अपितु विभिन्न विषयों में प्राप्त अंकों के प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई है, जो एक सुखद संकेत है। अर्थात विद्यार्थी अच्छे अंक लेकर पास हो रहे हैं। अंग्रेजी और गणित जैसे विषय, जिनका परिणाम अक्सर कमतर रहता था, उसका प्रतिशत भी शानदार रहा है।
बारहवीं के परीक्षा परिणामों ने तो सबको गर्व करने का अवसर प्रदान किया है जिसमें 86 फीसद छात्राओं तथा 75 फीसद छात्रों ने सफलता प्राप्त की। यदि कंपार्टमेंट को भी साथ जोड़ लिया जाए तो केवल 2.13 प्रतिशत लड़कियां फेल हुई हैं यानी करीब 98 प्रतिशत लड़कियां पास हुईं। वाणिज्य संकाय में 98.13 प्रतिशत विद्यार्थी पास हुए हैं। वर्ष 2015 में औसत 50 प्रतिशत से आरंभ हुई नतीजों की यात्रा आज 80 प्रतिशत पर पहुंच गई है। सरकारी स्कूलों के परिणामों में पिछले पांच वर्षों में 60 फीसद की वृद्धि हुई है और देखने वाली बात है कि राजकीय विद्यालयों के मुकाबले निजी विद्यालय लगातार पिछड़ते चले गए। वर्ष 2015 में पांच प्रतिशत से आगे चलने वाले निजी विद्यालय वर्ष 2019 में पीछे छूट गए। अब अगर छात्र संख्या की बात करें तो राजकीय विद्यालयों में पांच प्रतिशत अधिक विद्यार्थी परीक्षा में बैठ रहे हैं।
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अक्सर कहा जाता है कि राजकीय विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती। हरियाणा के सरकारी स्कूलों की तुलना दिल्ली के स्कूलों से भी की गई। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने एक दूसरे को चैलेंज किया। अब बोर्ड के परिणामों से बड़ा क्या प्रमाण होगा कि हरियाणा के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर तेजी से सुधार की ओर अग्रसर है। हरियाणा सरकार द्वारा जब से ग्रेस माक्र्स देने की परंपरा को समाप्त कर नकल माफिया पर नकेल कसी गई तथा अध्यापक स्थानांतरण पॉलिसी बनाकर शिक्षकों को बार-बार होने वाले तबादलों के भय से मुक्त किया गया तो सबका ध्यान पठन-पाठन पर लगा। यहीं से सकारात्मकता का विकास आरंभ हुआ। और यह कोई एक दो दिन में होने वाली घटना नहीं है।
इस बदलाव के प्रयासों में तत्कालीन शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल,प्रो. रामबिलास शर्मा और मौजूदा शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर के प्रयासों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। उनसे भी अधिक प्रयास मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल के हैं, जिनकी शिक्षक तबादला नीति के उत्तर प्रदेश समेत अन्य भाजपा शासित राज्य पूरी तरह से कायल हैं।
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यदि पिछले तीन वर्षों के परिणामों का अध्ययन किया जाए तो विषयवार भी परीक्षा परिणाम बढ़ रहा है। हिंदी, इतिहास, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र जैसे विषयों में पास प्रतिशत बढ़ा है। नॉन-मेडिकल की बात की जाए तो भौतिकी, रसायनशास्त्र,जीव विज्ञान जैसे विषयों का परिणाम बहुत ज्यादा शानदार रहा है। बिजनेस स्टडी और अकाउंटेंसी जैसे विषयों का परिणाम 99 प्रतिशत तक पहुंच गया। इस बात में कोई शक नहीं कि इस बार के परीक्षा परिणामों ने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है।
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