सत्यखबर, चढ़ीगढ़
हरियाणा के पंचायती राज सिस्टम में सरकार बड़ा बदलाव करने जा रही है। इसके तहत न केवल सरपंचों की जनता के प्रति जवाबदेही तय होगी, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी लगाम लग सकेगी। जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने वाले सरपंचों को अब एक साल के भीतर ही पद से हटाया जा सकेगा। गांव के वोटर ही सरपंच को कुर्सी से उतार सकेंगे। प्रदेश की भाजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार इसके लिए राइट-टू-रिकॉल कानून लाने जा रही है।
हरियाणा का विकास एवं पंचायत विभाग इस बिल का ड्रॉफ्ट तैयार कर चुका है। इसी मानसून सत्र में इस विधेयक को पास कराने की कोशिश है, जो पंचायत एवं ग्र्रामीण विकास मंत्री के नाते डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की देखरेख में तैयार हुआ है। अगले साल फरवरी में प्रस्तावित पंचायती राज संस्थाओं पर यह कानून लागू होगा। मध्य प्रदेश, पंजाब और कर्नाटक के अलावा दक्षिण भारत के कई राज्यों में यह कानून लागू है।हरियाणा में कर्नाटक की तर्ज पर कानून बनाया जा रहा है। राजस्थान में भी कानून बना हुआ है, लेकिन यहां चुने हुए पंच ही सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। हरियाणा द्वारा बनाए जा रहे कानून में यह अधिकार ग्राम सभा यानी पब्लिक (मतदाता) को होगा। प्रदेश के कुल मतदाताओं में ग्राम सभा के 60 प्रतिशत प्रतिनिधि भी अगर सरपंच की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं होंगे तो उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा। सरपंच के चुनाव के एक वर्ष बाद यह प्रस्ताव लाया जा सकता है।
बता दे की डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के अनुसार ग्राम सभा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद बीडीओ के पास केस जाएगा। ड्रॉफ्ट बिल में सरकार इस तरह के मामलों में बीडीओ स्तर के अधिकारी को ही अधिकार देगी। अविश्वास प्रस्ताव पर बीडीओ द्वारा वोटिंग के लिए तारीख और समय तय किया जाएगा। तय दिन सरपंच के पक्ष व विरोध में मतदान होगा। अगर ग्राम सभा के 60 प्रतिशत वोटर सरपंच के खिलाफ मतदान करेंगे तो अविश्वास प्रस्ताव को सफल माना जाएगा और सरपंच को कुर्सी छोड़नी होगी।
इसके साथ ही हरियाणा में सरपंचों के चुनाव सीधे होते हैं। यानी सरपंच का फैसला संबंधित गांव के वोटर ही करते हैं। ऐसे में उन्हेंं हटाने का अधिकार भी मतदाताओं को ही मिलेगा। जिला परिषद व पंचायत समिति में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का फैसला जिला पार्षद व पंचायत समिति सदस्यों द्वारा किया जाता है। ऐसे में जिला परिषद के चेयरमैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार जिला पार्षदों के पास ही रहेगा। प्रदेश के शहरी स्थानीय निकायों में भी यह अधिकार चुने हुए वार्ड पार्षदों के पास ही था, लेकिन अब नगर निगमों में मेयर के सीधे चुनाव करवाए जाने के बाद पार्षदों के पास अविश्वास मत लाने का अधिकार नहीं है। ग्राम पंचायतों में यह फैसला लागू और सफल रहने के बाद सरकार निकायों में भी इसी तरह राइट-टू-रिकॉल कानून लागू कर सकती है।
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